Wednesday 21 March 2012

गूंज



अब एक मौन है

प्रेम की स्वीकृति

हमारे बीच

एक गूंज

की तरह



जो सिर्फ महसूस

होती है

और ध्वनियां

एक दूसरे को काटती हैं


रमाकांत सिंह 18/03/2012
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित
चित्र गूगल से साभार

4 comments:

  1. अच्छा है पर ऐसा क्यु है ?....
    मौन कि भाषा हर भाषा में सबसे ज्वलंत है |
    मुहं से कुछ न कहे इसकी ख़ामोशी में भी दम है |

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  2. वाह वाह !
    बहुत खूबसूरत रचना है
    मुबारकबाद !

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  3. मौन को मुखर करती बहुत ख़ूबसूरत रचना....

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